श्याम की नगरी खाटू धाम की पूरी जानकारी - Khatu Shyam Ji, इसमें राजस्थान के सीकर जिले के खाटू श्याम जी कस्बे की धार्मिक जगहों के बारे में जानकारी है।
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सीकर जिले का खाटूश्यामजी कस्बा बाबा श्याम के मंदिर की वजह से सम्पूर्ण विश्व में प्रसिद्ध है। बाबा श्याम की इस पावन धरा को खाटू धाम के नाम से भी जाना जाता है।
खाटूश्यामजी कस्बा जयपुर से लगभग 80 किलोमीटर और दिल्ली से लगभग 275 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। रींगस जंक्शन निकटवर्ती रेलवे स्टेशन है जिसकी खाटू से दूरी लगभग 17 किलोमीटर है।
कहते हैं कि बाबा श्याम उन लोगों की मनोकामनाएँ पूर्ण करते हैं जो लोग सब जगह से निराश हो जाते हैं, हार जाते हैं।
इसलिए इन्हें हारे के सहारे के नाम से भी जाना जाता है। प्रतिवर्ष लाखों श्रद्धालु अपने आराध्य के दरबार में शीश नवाने खाटू नगरी आते हैं।
बाबा श्याम को श्याम बाबा, तीन बाण धारी, नीले घोड़े का सवार, लखदातार, हारे का सहारा, शीश का दानी, मोर्वीनंदन, खाटू वाला श्याम, खाटू नरेश, श्याम धणी, कलयुग का अवतार, दीनों का नाथ आदि नामों से भी पुकारा जाता है।
खाटू श्याम मंदिर का परिचय - Introduction to Khatu Shyam Temple
बाबा श्याम का मंदिर कस्बे के बीच में बना हुआ है। मंदिर के दर्शन मात्र से ही मन को बड़ी शान्ति मिलती है।
मंदिर में पूजा करने के लिए बड़ा हाल बना हुआ है जिसे जगमोहन के नाम से जाना जाता है। इसकी चारों तरफ की दीवारों पर पौराणिक चित्र बने हुए है।
गर्भगृह के दरवाजे एवं इसके आसपास की जगह को चाँदी की परत से सजाया हुआ है। गर्भगृह के अन्दर बाबा का शीश स्थित है। शीश को चारों तरफ से सुन्दर फूलों से सजाया जाता है।
मंदिर के बाहर श्रद्धालुओं के लिए बड़ा सा मैदान है। मंदिर के दाई तरफ मेला ग्राउंड है था लेकिन अब इसमें सुगम दर्शन व्यवस्था के लिए रेलिंग लगा दी गई है।
श्याम कुंड का परिचय - Introduction to Shyam Kund
मंदिर से कुछ दूरी पर ही पवित्र श्याम कुंड स्थित है। बाबा श्याम का शीश इसी जगह से प्राप्त हुआ था इस वजह से इस कुंड के पानी को बड़ा पवित्र माना जाता है।
ऐसी मान्यता है कि यह पानी पाताल लोक से आता है और जो भी व्यक्ति इस पानी से स्नान करता है उसके सभी पाप धुल जाते हैं।
पुरुषों एवं महिलाओं के लिए अलग-अलग कुंड बने हुए हैं। कुंड के पास में ही छोटे श्याम मंदिर के साथ-साथ अन्य कई मंदिर बने हुए हैं।
श्याम बगीची और महंत आलू सिंह की समाधि - Shyam Garden and the Samadhi of Mahant Aloo Singh
मेला ग्राउंड में श्याम बगीची है जिसमें श्याम जी के अनन्य भक्त आलू सिंह जी की समाधि बनी हुई है। कहा जाता है कि श्याम भक्त आलू सिंह जी इस बगीची के फूलों से बाबा श्याम का श्रृंगार किया करते थे।
खाटू श्याम मंदिर के प्रमुख त्योहार - Major festivals of Khatu Shyam Temple
मंदिर के प्रमुख त्यौहार में फाल्गुन मेला सबसे बड़ा है। पाँच दिनों तक चलने वाला यह मेला फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी से शुरू होकर द्वादशी (बारस) तक चलता है।
एकादशी को मेले का मुख्य दिन होता है। मेले के समय लाखों श्रद्धालु बाबा श्याम का निशान लेकर नाचते गाते खाटूश्यामजी के दर्शन करने आते हैं।
मेले में आने वाले कई श्रद्धालु होली तक खाटू नगरी में रुकते हैं और होली के दिन बाबा श्याम के दरबार में रंगों का त्यौहार मनाने के पश्चात अपने घर प्रस्थान करते हैं।
अन्य त्योहारों में कार्तिक माह की एकादशी को बाबा श्याम के जन्मोत्सव सहित कृष्ण जन्माष्टमी, होली, बसंत पंचमी आदि भी धूमधाम से मनाए जाते हैं।
सूरजगढ़ के निशान की कहानी - The story of the mark of Surajgarh
मंदिर के शिखर पर झुंझुनूं जिले के सूरजगढ़ का निशान साल भर लहराता रहता है। मंदिर पर सूरजगढ़ का निशान लहराने के पीछे एक किवदंती है।
इसके अनुसार काफी वर्ष पहले श्याम भक्तों में मंदिर पर अपना निशान चढाने की होड़ मच गई थी तब इस बात पर सहमति बनी कि जो श्याम भक्त मंदिर के बंद ताले को मोरछड़ी से खोलेगा, उसी का निशान शिखर पर चढ़ेगा।
सूरजगढ़ से निशान लेकर आए श्याम भक्त मंगलाराम ने मंदिर के ताले को मोरछड़ी से खोल दिया। उस समय से ही मंदिर के शिखर पर सूरजगढ़ का निशान चढ़ता आ रहा है।
बर्बरीक के खाटू श्याम बनने की कथा - The story of Barbarik becoming Khatu Shyam
बर्बरीक के खाटूश्यामजी के नाम से पूजे जाने के पीछे एक कथा है। इस कथा के अनुसार बर्बरीक पांडू पुत्र महाबली भीम के पौत्र थे। इनके पिता का नाम घटोत्कच एवं माता का नाम कामकंटका (कामकटंककटा, मोरवी, अहिलावती) था।
बर्बरीक ने देवियों की तपस्या करके उनसे तीन अभेद्य बाण प्राप्त किए थे। हारने वाले पक्ष की सहायता करने के उद्देश्य से नीले घोड़े पर सवार होकर ये कुरुक्षेत्र के युद्ध में भाग लेने के लिए आए।
भगवान कृष्ण ने ब्राह्मण के वेश में एक तीर से पीपल के सभी पत्तों को छिदवाकर इनकी शक्तियों को परखा। बाद में दान स्वरूप इनका शीश मांग लिया।
फाल्गुन माह की द्वादशी को बर्बरीक ने कृष्ण को अपने शीश का दान दे दिया। कृष्ण ने बर्बरीक को कलियुग में अपने नाम से पूजे जाने का वरदान दिया।
खाटू श्याम मंदिर का इतिहास - History of Khatu Shyam Temple
महाभारत के युद्ध की समाप्ति के पश्चात बर्बरीक का शीश रूपवती नदी में बहकर खाटू ग्राम में आ गया।
ग्यारहवीं शताब्दी में खाटू ग्राम में एक गाय के थनों से श्याम कुंड वाली जगह पर अपने आप दूध बहने की वजह से जब खुदाई की गई तो वहाँ बर्बरीक का शीश निकला।
ऐसा बताया जाता है कि ग्यारहवीं शताब्दी में खाटू मंदिर का क्षेत्र चौहान राजाओं के अधिकार में आता था। उस समय खाटू में श्याम कुंड वाली जगह पर एक गाय के थनों से अपने आप दूध बहने की बात का पता चलने पर राजा ने उस जगह खुदाई करवाई।
इस खुदाई में श्याम बाबा का शीश निकला जिसे 1027 ईस्वी में राजा रूप सिंह चौहान और उनकी पत्नी नर्मदा कँवर ने इसके प्रकट होने वाली जगह यानी वर्तमान श्याम कुंड से थोड़ी दूरी पर बाजार में एक मंदिर में स्थापित करवा दिया।
अगर हम खाटू श्याम मंदिर के प्रामाणिक इतिहास की बात करें तो आप पंडित झाबरमल्ल शर्मा की किताब खाटू श्यामजी का इतिहास में पेज नंबर 40 और 49 देख सकते हैं।
पंडित झाबरमल्ल शर्मा के अनुसार राजा ने श्याम कुंड से मूर्ति को निकलवाकर बाजार में एक प्राचीन मंदिर में स्थापित करवाया। उस समय इस मंदिर की परिक्रमा में एक शिवालय आता था जो आज भी मौजूद है।
मुगल काल में बादशाह औरंगजेब ने श्याम बाबा के इस प्राचीन मंदिर को तुड़वा डाला और इसकी जगह एक मस्जिद बनवा दी। आप आज भी श्याम मंदिर की जगह बनी इस मस्जिद के पास उस प्राचीन शिवालय को देख सकते है।
औरंगजेब की मृत्यु के बाद 1720 ईस्वी (विक्रम संवत 1777) में जोधपुर के शासक अभय सिंह ने श्याम बाबा के नए मंदिर की शुरुआत कराई और मंदिर का निर्माण पूर्ण हो जाने पर बाबा श्याम के शीश को उस मंदिर में स्थापित करवाया।
आज हम खाटू में श्याम बाबा के दर्शन के लिए जिस मंदिर में जाते हैं वो श्याम बाबा का मूल मंदिर ना होकर जोधपुर के शासक अभय सिंह द्वारा बनवाया गया दूसरा मंदिर है।
आज के समय ज्यादातर लोगों को तो खाटू में श्याम बाबा के मूल मंदिर के बारे में पता ही नहीं है। उम्मीद है इस जानकारी से सभी श्याम भक्तों को श्याम मंदिर के इतिहास के बारे में उपयोगी बातें जानने को मिली होगी।
बाबा श्याम के मंदिर की वजह से धीरे-धीरे यह गाँव खाटूश्यामजी के नाम से पूरी दुनिया में प्रसिद्ध हो गया। आज लोग इसे खाटू धाम के नाम से भी जानते हैं।
खाटू धाम की पूरी जानकारी का वीडियो - Video of complete information about Khatu Dham
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डिस्क्लेमर (Disclaimer)
इस लेख में दी गई जानकारी केवल शैक्षिक उद्देश्य के लिए है। इस जानकारी को विभिन्न ऑनलाइन एवं ऑफलाइन स्रोतों से लिया गया है जिनकी सटीकता एवं विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। आलेख की जानकारी को पाठक महज सूचना के तहत ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।
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